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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६. www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतारि सरणं पवज्जामिः "अरिहते सरणं पवज्जामि,”, सिद्वे सरणं पवज्जामि” साहू सरणं पवज्जामि" केवलीपण्णतं धम्म सरणं पवज्जामि. अरिह ंतो मह देवो, जावज्जजीषं सुसाहूणो गुरूणो; जिण पण्णत्त तत्त इअ सम्मत्त मए गहीए. शिवमस्तु सर्व जगतः परहित निदता भवन्तु भूतगणाः; दोषाः प्रयान्तु नाश, सर्वत्र सुखी भवन्तु लोकाः ० For Private And Personal Use Only मोक्षगामी सुखकरु, इह जगत स्वामी, मोहस्वामी, प्रभु अक, अचल, अखण्ड, निर्मळ, भव्य मिथ्यातमहरु. देवाधिदेवा, चरण सेवा नित्य मेवा आपीये निजदास जाणी दया आणी आप समोवड थापोए भवो भव तुम चरणोनी सेवा, हुं तो मागुं देवाधिदेवा, सामु जुओने सेवक जाणी, एवी उदयरत्ननी वाणी. भवो भत्र सेवा, रे तुम पद कमळनी देजो दीनदयाळ, बे करजोडी रे उदयदत्न वेडे, नेक नजरथी निहाळ, विनति मारी रे सुणजो साहिबा ३ जनम अनंता हो श्री जिन हुं भम्यो अवर अवर अवतार; पुण्य प्रमाणे रे मां पाभीयो, नत्रभर भरत मोझार, विनति. महाविदेहे रे स्वामि ! तुमे वसो, पांख नहीं मुज पास; किग परे आवी रे पाप आलोइए मनमां रहियो विमास वि०५ कर्मने भोहे खूब कस्यो रे लाल, हजी न थयो खुलास रे; जिम तिम करी प्रभु तारजो रे लाल, हुं तो धरु तुमारी आशरे प्रभाते उठी करु वंदना रे लाल १
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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