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भक्ति-प्रहूब-सुपर्व-पूजित पदाम्भोज जगज्जीवन, ब्रह्माजिह्म-लयावदातहृदया ध्यायति योगीश्वराः; प्रातः पूर्वविदेह भूषगकरं स्वात्माविभेदेन यं, स श्रीमान् हृदये करोतु वसति सीमन्धरः श्री जिनः ६ जगज्जन्तुनिस्तारणे यानपात्रं, समारामविश्रामसंलोनचित्तम् । नतानेकनाकेन्द्रपादारविदं, स्तुवे स्वामि सीमन्धरं देवदेवम् । महाकेवलनाण कल्लाणवासो, सलावण्णसोवण्यण्णवण्णप्पयासो; थुणेसारसिद्धि पुरीसत्थवाह, सया सामिसोमधर तित्थनाह ८ महीमंडणं पुण्णसोवण्गदेह, जगागंदगं केवल नाणगेह; महाणंदलच्छीव हुबद्धराय, मुसेवामि सोमंधर तित्थरायं. ९
खमासमग इरियावलियं० तस्स उत्तरी अन्नत्थ० एक लोगस्सनो का उसग्ग० प्रगट लोगास बोली निम्न लिखित 'जय जिनेन्द्र !' आदि मन्त्रो बाली खमासमण दवू. ए रोते बीजी अने त्रीजी वार 'जय जिनेन्द्र !' आदि बोली बोजु अने त्रीजु खमासमण देवु.
श्री चैत्यवंदन विधि
जयजिनेन्द्र ! जगद्वत्सल ! ज्योतिः स्वरूप !, जगदेकाधार जगदुद्धारक ! जगत्तारक !, जगत्पूज्य ? जगद्वन्द्य ! जगदानन्ददायक ! निरञ्जन ! निराकार ! भवसयमजक, देवाधिदेव श्री सीमन्धरस्वामि प्रमुखानन्तानन्त जिनेन्द्रेभ्यो नमो नमः ।। ___इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सिरे सीमंघरसामिजिणं आराहणत्थं चेइयत्रंदणं करेमि ? इच्छं कड़ी "सकलकुशलबल्लि" बोली चैत्यवंदन करवु.
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