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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०५. आंख तळे आणु नहि, अवर अनेरा देवः साहिब जब थे में सुण्यो, तुहि देवाधिदेव. ४ भूतले भला भलेरडा, जे जाणी में जाण; ते सघळा अ तुम पछी सीमन्धर जगभाण. ६ ढाळ ५ (जिहां लगे आतम द्रव्यनु'-ए-देशो) निःसनेही तुम ही भये, न्यायी नाथ निरीह; नेह करी कुण निरवहे, जावज्जीव निश दिह. नि० १ साजन भाजन भोजने, युगति प्रीत जगाय; नेह करतां सोहिलो, पण निरवाहो न थाय. नि. २ जगमां विरला जाणीये, सयल अखंड स्नेह; संपदि आपदि सारीखा, छांडी न दीये छेह. नि० ३ तुम म्होटा हुँ नानडो, युं दिल में मत आण, सूरज पंकज प्रीतडी, उत्तम ने अहिनाण. नि० ४ वड तरुअर छाया करे, राय रंक समान; तिम तुम हम उपर धरो, परिगल प्रेम समान. ज्यु वाधे हम वान. नि० ५. दुहा निःसनेही सुखीया रहे, वेलु कण ज्यु होय; ससनेहा तिल पीलीए, दही मथे सब कोय. १ नेह न कीजे जिहां लगी, तिहां जीवते सुख होय; नेह विरह जब उपजे, तब दुःख साले सोय. २ निरगुण नेह न कीजीये, कीजे सद्गुण संग, सीन्मधर जिन सरीसो राखं अधिको रंग. ३ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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