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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाभः के में वनमें दव धरमे दीयाजी, के में गाळ्या के में कूडां कामण केळव्याजी, जिणे त्रटत्रट त्रुटे आभ. जि० ६ के में फोडी सरोवर पाळ, गुहिरा द्रह शोषावियाजी; भण वाळक स्त्री गोवध कीधांजी, पाडयां माछीए जाळ जि० ७ इति परेपरे पातक जे कर्या जी, तस फळ पाम्यो आज; जेणे तुम हमथी दूर देशांतरेजी, जइ वस्या जिनराज जि० ८ वचन सुधारस सिंची ठारीयेजी, विरह दावानळ दाह; अब थे हमकु दरिसण दीजयेजी, हम तुम दरिसण चाह. जि० ९ दुहा मनह मनोरथ जे करें, ते पूरण असमत्थ; स्वर्गे सुरद्रुम मंजरी, त्यांहि पसारे हत्थ फिट हियडा फूटे नहि, हजी नहि तुजने लाज; जीव जीवन विछोहडे, जीव्यानुं कुण काज. माणसथी माछा भलां, साचा नेह सुजाण; जय जळ्थी होय जुजुआ, त्युं ते छंडे प्राण. सहस वहे संदेशडो, लेख लहे लख मूल; अंगो अंग मेळवडो, सुरतरु फूल अमूल. (ढोळ ४) (सुत सिद्धारथभूपनो रे ओ देशी) अमृत समरे अमर जय रे, जिम रति समरे काम; माधव मन जिम राधिका रे, जिण लखमण श्रीराम रे, जिम गुण सांभरे, सीमन्धरजिनराय रे सगुण न विसरे. जि० सामज समरे सल्लकी रे, सारंगी सारंग; तारापति जेम तारिका रे, जिम मृग राग तरंग रे जि० For Private And Personal Use Only २०३ १
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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