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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०२ पूज्यो प्रणम्यो संथुण्योजो, तु गायो गुणवंत; जेणे तु नयणे निरखीयोजी, तस जीवित फलवंत. करो० ८ ते दीन कबही आवशेजी, मुज मन ठारणहार; तुज मुख चंद निहालताजी, सफळ करीश अवतार. करो? ९. दुहा अंतरीया बहु डुगरे, तह रुक्खेहि घणेहिं; ते सज्जन किम विसरे, जे सघना गुणेहिं. प्रीति भली पंखेरूआ, उडी जेह मिलंत; माणस परवश बापडा दूर रह्मा झुरंत. २ दीठा मीठा तिहां लगे, हरिहर अवर अनेक; जिहां लगे तुम गुण नवि सुण्या, हीयडे धरोय विवेक. ३ (ढाळ ३) (सहसु संवेगी सुंदर आतमाजी-से देशी) जिनजी सुगजो हो मुज मन वातडीजी, रातडी रोतां जाय; दिवस गमीजे हो प्रभुजी झुरता जी, तुम विरहो न खमाय. जि० १ पूरवविदेहे हो धन्य जे जनाजी, नितु सेवे तुम पाय; अभ पुनः स्वामी हो जेह विछोहडोजी, ते अम पाय पसाय जि० २ परभव परिगल पातिक जे कर्या जी, ते प्रगटया सवि आज; जेणे तुंम हुँ पामु नहिजी, तुम शुं छे मुज काज. तुम हो गरीब निवाज. जि० ३ प्रवचन वचन विराधन मे कयु जी, न धरी सद्गुरुशिख; के में रमतां ऋषि संतापीयाजी, के भांजी ऋषि भिख जि० ४ चारित्र लेई हो वेष विराधीयाजी, के में छांडी दिक्ख; के में बाळक मायथी विछोहीयाजी, के में फोंडी लीख. जि० ५ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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