SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८५ ढोळ-- श्रीजी राग केदारो मान सरोवर हंसलो रे, सालरि जिम गयंद, जिम राधा गोविंद, जिनेसर तुम्हसु प्रीति अपार, तुम हो जगदाधार, हवे करजो सेवक सार, जिने. आंचली चातक जिम जगि मेहलो रे, जिम चकोर चंद, कोयल मास वसंतने रे, चक्रवाक दिणंद. जिने. २७ म - कर समरें मालतिरे, सतीय समरे निज कंत, तिम हुसमरु निसिदिने रे श्रीसीमंधर भगवंत. जिने. २८ मन पसरें जिम माहरो रे तिम जो कर पसरित, तो हु जिनजी ईहां थकी रे, तुम्ह चरणे लागि रहंत, जिन. २९ दिसि वंदन प्रभु हु करु रे, नितु उठी परभाति, ते दिन कहिइ आवसी रे, जई भेटु श्री भगवंत. जिने. ३० सुपनंतरी प्रभु तुं मिले, तो मनि हरखे अपार, जागंतां तुज विहर थकी, वरसे आसु धार. थोडे कहे घणु प्रीछजो, तुम्ह पासे छे जीव; मन जाणे उडी मिलु, पणि दैव न दीधी पांख. वाट विषम परवत घणा, दूर विदेशे वास, साहिब तुज मिलवा भणी, कहो किम पहोंचे आश. मनडु माहरु टलवलइ, तुम्ह मिलवा जिनराय, सेवक तो परवसी थया, संग नथी मिलणांय. हु तुज समरु अहनिसें तुम्हो सेवक नांणो चित्त, एक पखीई इम प्रीतडी, किम चाले भगवंत. For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy