SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८४ अम्ह अक साहिब तुं अवनी तले रे, पाय नमुं करजोडी; म्हने तुम्ह विन अबर न को वस्यो रे, पणि तुम्ह सेवक कोडी. विनति. १८ सूरज उगे पश्चिम जो ध्रुव चले जो उत्तर दिशि सायर रेले सगली भोमिका रे, तोहि खिण अक तुम्ह उपर थकी रे, कदा रे, डोले मेरु गिरिंद: थकी रे, ताप करे जगि चंद. विनति. १९ तुम्ह चरणां तले मनडुं महारुं रे, थाप्यो श्री जिन भाण; तुम्ह आगलि कहिं ते सवि कारिमुं रे, तु जाणे जाण सुजाण. विनति २१ तुम्ह रतन अमोलिक दूहा साहिब तुज दीदारनी, मुजने छे बहु खंति; पणि किम उंचातरू तणां फल प्रीति मली तुम्हस्यु घणी, तुं मुज खिण खिण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बोले मृषा हरचंद : नवि उतरे चित्त जिशुंद. विनति. २० वामन पामंति. विनति. २२. अवर न कोई सुहाय. सांभरे; श्री सीमंधर जिन राय. विनति २३ नहि वीजासु प्रीति, धरे कुण चित्त. विनति २४ सज्जन सरीखो नहि, पामिने, कांच तुम्हस्युं बांधी प्रीतडी, जो जाणो तो पालजो, उभा बेठा थकां, श्री सीमंवर जिन सांभरे, उत्तम नहींतर For Private And Personal Use Only जाणि तुम्ह जाण, कल्याण. विनति २५ जागतां थकां, सुतां खिण खिण हियडा मांहि. विनति २६
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy