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अंतेवासी तेहनो हु'.
गुणचंद्र ध्यावे ध्यान रे हु'. श्री जिनराज पसायथी, हु,
पाम्यो एह सुज्ञान रे हु. २० स्तवन सीमंधर स्वामिनो हु।
भणशे गुणशें जेह रे हु ० अजरामर सुख शाश्वता; हुँ..
लहेशे निरंतर तेह रे हु० २१
(७९)
प्रभु नाथ तु तिय लोकनो प्रत्यक्ष त्रिभुवन भाण, सर्वज्ञ सर्वदर्शी तुमे, तुमे शुद्ध सुखनी खाण,
जिनजी विनति छे एह जिनजी १ प्रभु जीव जीवन भव्यना, प्रभु मुज जीवन प्राण; ताहरे दर्शन मुख लह, तुहि जगत स्थिति जाण, जिनजी २ तुज विना हु बहु भव भम्यो, धर्या वेश अनेक निज भावनो पर भावनो जाण्यो नहि सुविवेक. जिनजी ३ धन्य तेह जे नित्य प्रह समे, देखे जे जिन मुखचंद तुम वाणी अमृत रस लही, पामे ते परमानंद. जिनजी ४ एक वचन श्री जिनराजनो नयगम भंग प्रमाण; जे सुणे रुचिथी ते लहे, निज तत्त्व सिद्धि अमान. जिनजी ५ जे क्षेत्र विचरो नाथजी, ते क्षेत्र अतिसुपसथ्थ तुज विरह जे क्षण जोय छे; ते मानीये अकयथ्य. जिनजी ६ श्री वीतराग दर्शन विना, वोत्यो जे काल अतीत; ते अफळ मिच्छामि दुक्कडं, तिविह तिविहंनी रीत. जिनजी ७ प्रभु वात मुज मननी सहु जाणो ज छो जिनराज; स्थिर भाव जो तुमचो लहु तो मीले शिवपुर सात जिनजी ८
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