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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७५ अंतेवासी तेहनो हु'. गुणचंद्र ध्यावे ध्यान रे हु'. श्री जिनराज पसायथी, हु, पाम्यो एह सुज्ञान रे हु. २० स्तवन सीमंधर स्वामिनो हु। भणशे गुणशें जेह रे हु ० अजरामर सुख शाश्वता; हुँ.. लहेशे निरंतर तेह रे हु० २१ (७९) प्रभु नाथ तु तिय लोकनो प्रत्यक्ष त्रिभुवन भाण, सर्वज्ञ सर्वदर्शी तुमे, तुमे शुद्ध सुखनी खाण, जिनजी विनति छे एह जिनजी १ प्रभु जीव जीवन भव्यना, प्रभु मुज जीवन प्राण; ताहरे दर्शन मुख लह, तुहि जगत स्थिति जाण, जिनजी २ तुज विना हु बहु भव भम्यो, धर्या वेश अनेक निज भावनो पर भावनो जाण्यो नहि सुविवेक. जिनजी ३ धन्य तेह जे नित्य प्रह समे, देखे जे जिन मुखचंद तुम वाणी अमृत रस लही, पामे ते परमानंद. जिनजी ४ एक वचन श्री जिनराजनो नयगम भंग प्रमाण; जे सुणे रुचिथी ते लहे, निज तत्त्व सिद्धि अमान. जिनजी ५ जे क्षेत्र विचरो नाथजी, ते क्षेत्र अतिसुपसथ्थ तुज विरह जे क्षण जोय छे; ते मानीये अकयथ्य. जिनजी ६ श्री वीतराग दर्शन विना, वोत्यो जे काल अतीत; ते अफळ मिच्छामि दुक्कडं, तिविह तिविहंनी रीत. जिनजी ७ प्रभु वात मुज मननी सहु जाणो ज छो जिनराज; स्थिर भाव जो तुमचो लहु तो मीले शिवपुर सात जिनजी ८ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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