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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६८) (साहिब अजित जिणंद जुहारिये-से देशी) साहिबा श्री सीमंधर साहिबा, साहिबा तुमे प्रभु देवाधिदेव; सन्मुख जुओने म्हारा साहिबा, साहिब मन शुद्धे करूं तुम सेव. एक वार मळोने म्हारा साहिबा-ए आंकणी० १ साहिवा सुखदुःख वातो म्हारा अतिघणी, साहिवा कोण आगळ कहुं नाथ ! साहिबा केवळज्ञानी प्रभु जा मिले, साहिबा तो थाउ हुँ रे सनाथ. एक वार० २ साहिबा भरतक्षेत्रमा हु अवतर्यो, साहिबा ओछु एटलु पुण्यः साहिबा ज्ञानी विरह पडयो आकरो साहिबा ज्ञान रह्यं अति न्यून. एक वार० ३ साहिबा दश दृष्टांते दोहिलो, साहिवा उत्तम कुल सोभाग; साहिबा पाम्यो पण हारी गयो, साहिवा जिम रत्ने ऊडाडयो काग. एक वार० ४ साहिबा षडूरस भोजन बहु कर्या, साहिबा तृप्ति न पाम्यो लगार, साहिबा हुं रे अनादिनी भूलमां साहिबा झळ्यो घणो संसार. एक वार० ५ साहिबा स्वजन कुटुंब मळ्यां घणां, साहिबा तेहथी दुःखे दुःखी थाय, साहिबा जीव ओकने कर्म जुजुआ, साहिबा तेहने दुर्गति जाय. एक वार० ६ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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