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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४९ (प्रथम जिनेश्वर प्रणमीए, जास सुगंधी रे काय-ए देशी) गुणनिधि साहिब सेविये सीमंधर जिनराज; सर्व सुपर्व अगर्व नमे, जस पयकजे शिववहु वरणने काज. १ जयवंती पुक्खलावती, विजये विजय करंत; पुरी पुंडरीगिणीनाथ श्रेयांस नृपांगनां, सत्यकी उदर धरंत. २ कुंथु अरजिन अंतरे, सीमंधरजिन जात, विद्या जणे विवेक पूरव दिशि तम रिपु, सुरगिरि उपर स्नात. ३ तनु शत पंच धनुष तणा, रमणीय रूप मणिकंत, दक्षिण पयतणे जांघ वृषांक कनक छवि, कांति वीर्य अनंत. ४ सुव्रत नमि अंतर विचे, दीक्षा लीओ तजी भोग आतम शुद्ध घाति समिध वन जवालियां, शुकल हुताशन योग. ५ अडहिय सहस सुलक्षणे, शोभित साहिब अंग; करगत आमल विश्वने जाणे जीलतो ज्ञान जलाब्धि तरंग. ६ परषदा बारनी आगळे, देशना वरसंत शांत दांत महांत प्रशांत केवलधणी, दश लाख केळवी संत. ७ शत एक कोडी मुनिवरा, चोराशी गणधरा; उदय पेढाल जिनांतरमा शिव संपदा, वरशो तजीय संसार. ८ समय तणे अनुसारथी, लाधी मैं तुम भाळ; तिणे दगतीत विण नेत्र विलक्ष उभय हुआ, जिम सर भ्रष्ट मराळ. ९ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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