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(५९) श्री सीमंधर साहिबा रे, हुं केम आयु तुम पास हो मुणिंद; दूर वच्चे अंतर घणु रे, मुने मळवानी घणी होश हो जिणिंद
श्री सीमंधर सा० १ हुँ तो भरतने छेडले रे, प्रभुजी कांई विदेह मोज्ञार हो मुर्णिद; डुंगर वच्चे दरिया घणा रे, कांई कोश तो काई हजार हो जिणंद;
श्रो सीमधर सा० २ प्रभु देता हशे देशना रे, कांई सांभळे तिहांना लोक हो मुणिंद, धन्य ते गाम नयरीपुरी रे, जिहां वसे छे पुण्यवन्त लोक हो जिणिंद
श्री सीमंधर सा० ३ धन्य ते श्रावक श्राविका रे, जे निरखे तुम मुखचंद हो मुणिंद; पण ओ मनोरथ अम तणो रे, कदी फळशे भाग्य अमंदहो जिणिंद
श्री सीमंधर सा ४ वर्तारो वरती जुओ रे, कांई जोशीए मांडया लगन हो मुणिंद; क्यारे सीमंधर भेटशु रे, मुने लागी एह लगन हो जिणिंद.
श्री सीमंधर सा. ५ पण कोई जोशी नहि एवो रे, जे भांजे मनडानी भ्रांत हो मुणिंद; पण अनुभव मित्र कृपा करे रे, तव मिलवो तुम एकांत होजिणिंद.
श्री सीमंधर सा०६ वीतराग भावे सही रे. तमे वर्तो छो जगन्नाथ हो मुणिंद; पण में जाण्यु तुम वेणधी रे, हुथयो स्वामि ! सनाथ हो जिणिंद.
श्री सीमंधर सा० ७ श्री पुष्कलावती विजये जयोरे, कांई नयरी पुंडरीगिणी नाम हो जिणिद; सुत्यकी नंदन वंदना रे, काई अधारो, गुणधाम हो जिणिंद;
श्री सोमंधर सा• ८ श्री श्रेयांस नृप कुल चंदलो रे कांई ऋक्ष्मणि राणीना कंत हो मुर्णिद; वाचक रामविजय कहे रे, तुमे होजो मुज चित्तवंत हो जिणि.
श्री सोमंधर सा० ९
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