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(५०)
पुंडरीकिणी नगरी वखाणिये, सखो, श्रेयांस घरे जायो पुत्र रतन्न के चालो रे. आपण देखवा जइये, नयणे कुमार निहाळिये. सखी, कीजे हे ऐहना कोड जतन्न के, साहेलोओ, सुजाण मोरो जीवन प्राण, सखी कीजे एहनी मस्तके,
हे सखी धरिये आण के. चालो रे० १ घर घर थयां वधामणां, वारु वाजे सखी ! ढोल निशान के, चालो रे; धवलमंगल गाये गोरडी.
जोवा आव्या हो सखी, सुर नर राणके; चालो० २ यौवन प्राप्त प्रभु थया,
सखी वाला हो सीमंधरकुमार राय महोच्छव बहु करे,
परणाव्यां हे सखी रुकमणि नार के चालो० ३ राज्य लीला सुख भोगवी,
प्रभु लोधो हे सखी संयम भार के चालो रे, समिति गुप्ति सुधी धरे,
गामागर हो सखी करे विहार के चालो० ४ करम खपावी घातीया प्रभु पाम्या हे सखी केवळ नाण के चालो रे; समवसरण देवे रच्युं,
तिहां बेसी हे सखि करे वखाण के० ५
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