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(४५) (जगजीवन जग वालहो-ए देशी) सीमंधर जिन सेववा, मन धरे वहु उत्साह, लाल रे. आडा डुंगर वन घणा, नदीओना प्रवाह. लाल रे० सी० इह क्षेत्रे एहवा कोण छे जे जाणे मननी वात, लाल रे० कही उत्तर मन रीझवे, सुप्रसन्न हुए मन गति लाल रे० सी० मन तो तुज चरणे भमे, भामणे भूख ना जाय, लाल रे० मुज मन वात तो तुं लहे, किम कहु तुज समजाय. लाल रे० सी० ज्ञान अनंत बल ताहरे, सेवे सुरासुर कोड, लाल रे० आज्ञा द्यो अक देवने, पहोंचाडे, मन कोड, लाल रे० सी० धन्य देश जिहां तुमे रह्या, धन्य तुम पास, लाल रे० धन्य नगरी पुंडरीगिणी, जिहां प्रभु छे तुम वास. लाल रे• सी० अरज मुज अवणारिये, महेर करी महाराज. लाल रे० करीये नयन मेलावडो, अंतरजामी आज. लाल रे० सी० अळगा तोही ढुंकडा, वसोया मनह मोझोर; लाल रे० लब्धिविजय सोमंधरा, मुज उतारो भवपार. लाल रे० सी०
(राग : मारुणी) स्वामि तारने रे मुज परम दयाल, सीमंधर भगवंत रे; शरणागत सेवक जन वच्छल, श्री जिनवर जयवंत रे. १ पुक्लावती विजय जिन विचरे, महाविदेह मोझार रे; हु अति दूर थकां प्रभु तोरी, सेवा करुं किम सार रे. २ है है दैव किम न दीधी, पांखलडी मुज दोय रे; जिम हुं जईने जगगुरु वादु, हियडलु हरखित होय रे. ३
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