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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४३) (राग - तुं मन मोह्यो रे वीरजी - ओ देशी) श्री सोमंधर साहिबा, धरजो धरम स्नेह, सेवक रसियो सेवा तणो, हुं छु तुम पद खेह. श्री सी० १ - वहाला तुमे वस्या वेगळा छो अम्ह हियडा हजूर; तिथी तिमिर दूरे गया, उम्यो अनुपम सूर. श्री सी० २ नयणे प्रीति जे दाखवे, ते संयोग संबंध: अंतर अंतरविण जिके, मिलीया परम ते बंधु. श्री सो० ३ पुक्खलाई विजया जिहां नयरी पुंडरीकिणी मांहि; विचरे तिहां सहु इम कहे, पण ते नियति न प्राहि. श्री सी ४ विजया मुज शुद्ध चेतना, भक्ति नयरी निरुपाधि; तिहां विचरे मुज साहिबो, जिहां सुख सहज समाधि श्री सी० ५ ओक व्हारी तोही उपरे, में तो कीधो रे स्वाम ! लोक प्रवाहथी जे बीहे, तेहनां न सरे रे काम. श्री सी० ६ जिण दिनथी तुम्हे चित्त वस्या, नवि अवर को दाय; - ज्ञानविमल सुख संपदा, अधिक अधिक हवे थाय. श्री सी० ७ (४२) श्री सीमंधरजीकु वंदनो, नित होय जो हमारी रे; मन वचन काया त्रिके करी, सेवा चाहूं तुम्हारी रे सी० १ तुमे तो विदेहमां जई वस्या, हम भरतमें बेठे रे; मनडु चाहे इण घडी, जई किम पद ईहां आरा है पांचमा, तिहां चौथा उहां तुम जंघा For Private And Personal Use Only भेटे रे सी० २ आरा रे सुख भोगवो, हमकुं न संभारो रे. सी० ३ विद्याचारिणी कोई लब्धि न जई प्रभु पद भेटीये, मनडुं घणुं दीसे रे हीसे रे सी० ४
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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