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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चेतन शुद्ध स्वभावमां, लीनता, क्षण थावे; त्यारे सहजानंदनो, अनुभव मन आवे. ५ क्षयोपशम शाने करी, प्रभु श्रेणि चढीयो; शुक्ल ध्यान महाशस्त्रथी, मोह साथे लडीयो. ६ जयलक्ष्मी अंगीकरी, नव ऋद्धि पायो; "बुद्धिसागर" ध्यानथी, प्रभु अंतर आयो. ७ (३८) सुणो चंदाजी ! 'सीमंधर' परमातम पासे जाजो; मुज विनतडी प्रेम धरीने एणी पेरे तुमे संभळावजो. -आंकणी० जे त्रण भुवननो नायक छ, जस चोसठ इन्द्र पायक छे; नाण दरिशण जेहने खायक छे. सुणो० १ जेनी कंचन वरणी काया छे, जस धोरी लंछन पाया छे; ___ 'पुंडरीगिणी' नगरीनो राया छे. सुणो० २ बार पर्षदा मांही बिराजे छ, जस चोत्रीश अतिशय छाजे छे । गुण पांत्रीश वाणीए गाजे छे. सुणो० ३ भविजनने जे पडिवोहे छे, तुम अधिक शीतळ गुण सोहे छे। रूप देखी भविजन मोहे छे. सुणो० ४ तुम सेवा करवा रसियो छु, पण भरतमां दूर वसियो छु महा मोहराय कर फसियो छु. सुणो० ५ पणसाहिब चित्तमां धरीयो छे, तुम आणा कर ग्रहीयो छे तो काईक मुजथी डरीयो छे सुणो० ६ जिन 'उत्तभ' पूंठ हवे पूरो कहे 'पद्मविजय' थाउ शूरो तो वाधे मुज मन अति नूरो. सुणो० ७ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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