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रससभर रास)नु प्रकाशन पण ए भक्तिरक्त हैया प्रत्ये अत्यंत अनुमोदना जगाच्या विना रहेतु नथी.
जेम कळा ए कलानिधि (चंद्र)नी तेमज प्रभा ए प्रभाकर(सूर्य)नी शोभा छे तेम प्रस्तावना ए ग्रंथनी शोभा छे. सदर ग्रंथमां एकला श्री स्वामी संबंधी ज विपुल साहित्य छे जमां सवा सो गाथाना अने साडा त्रणसो गाथानां गजबनाक स्तवनो तेमज 'श्रीशोभातरंग आदि महत्त्वनां छे. उपरांत २० विरहमाण जिननी पूजाओ तेमज स्तवना, श्रीशीलरत्न सूरीश्वरजीकृत चमत्कारपूर्ण रचनावाळी संस्कृत चेत्यवंदन चोविशी, नवपदजीनां चैत्यवंदनो यावत् विमळाचळजी अने वर्तमान चोविशीना बधा भगवंतोनां स्तवना पण साथे आपीने आ ग्रंथने खूब ज उपयोगी बनाववामां आव्यो छे.
__आजकाल नवसर्जन(?)ना नवां नवां पुस्तको थोकबंध भावमा बहार पडे छे त्यारे पूर्वाचार्योनेा आवा प्राचीन अने बहुमूल्य साहित्यने ओकत्र करी प्रकाशित करवानी मंद जेबी जणाती प्रवृत्ति माटे अंतरमा अहोभाव जागृत थया वगर रहेतो नथी. विशेष करीने प्राचीन धुरंधर जैनाचार्यो रचित संस्कृत-प्राकृतिक दुर्गम साहित्य (के जेमांनु केटलुक ता जीणप्राय अवस्थामां छे) प्रगट करवानी खास जरूरियात छे आटलुं सामयिक सूचन अस्थाने गणाशे नहीं.
प्रान्ते प्रस्तुत ग्रन्थ सौने अप्राप्त (परमात्मा अने परमपदनी) प्राप्तिकाजे खूब खूब उपयोगी निवडो एवी मंगलकामना सेवी विरमु छ.
"जाणतां के अजाणतां, जे जिनवचन विरुद्ध कडं कांई तेनो हजो, 'मिच्छामि दुक्कडं' शुद्ध"
-आ.दे. श्री महेन्द्ररिश्वर चरणांभोज भृग श्री सिद्धाचल शणगार जैन ट्रंक घंटीपाग मुनि मणिप्रभविजय (रत्नपुंज) प्रतिष्ठा दिन (स. २०३४ फागण तखतगढ, मंगल भुवन, पालीताणा सुद ४ ने रविवार)
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