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तेओ आ भवमां नहीं, तो आगामी भवमां पण श्री सीमन्धरश्रीने प्रगटपणे भेटी शके छे. अनुभवीओनां वेण छे के द्रव्य-भाव बन्नेनी अपेक्षित अनन्य भक्तिनो संयोग सधातां आ क्षेत्र अने आ काळमां पण वहाला सीमन्घरजीनुं समवसरण सहित स्वप्नदर्शन तो सुपेरे थई शके छे.
आवी ज कोई अनन्यभक्ति द्वारा अप्राप्तनी प्राप्ति काजे तरफडत प. पू. आ भगवंत श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजीना सुप्रयासनी आ एक पुनरावृत्ति छे. "श्री सीमन्धरस्वामी स्तवनादि समुच्चय" श्री सत्यकीनंदन विभुविषयक प्राचीन- अर्वाचीन प्राप्य - अप्राप्य जेटलं पण साहित्य मळे ते एकत्र करी स्व-परना परम कल्याणमां कारणभूत थवानी तेओश्रीनी मैत्रीभावना आ प्रकाशनमां दिव्यदर्शन थाय छे. पूज्यश्रीए पत्रमां जणान्यु हतु के " जेम बने तेम परमतारकश्रीना अनन्तानन्त गुणो तथा ऊपकारोनुं तादृश चित्र प्रस्तावनामाँ खड्ड थाय ते रीते लखवानुं लक्ष्यमां देशो." पण आ पामर जीवनी एवी तो शक्ति क्यांथी होय के जेथी तथा प्रकारनु' ' तादृशचित्र' खडुं करवामां तेने सफळता सांपडे ! तेस छतां ते दिशामा यत्किंचित करवा आ एक निष्फळ प्रयास कर्यो छे, ए दृष्टिए के आचार्य भगवंतने कदाच कंईक पण संतोषनी प्राप्ति आ शब्दोनी हारमाळाथी थाय.
अहा ... भक्तिनी शक्तिनी बधानी आगळ कई रीते पण करवी अभिव्यक्ति ? 'महेसाणामां स्वामी सीमन्थर' शब्दोथी 'सकलतीर्थवंदना' स्तवनमा जेनी नांध लेवाई छे ते विराटकाय अने समग्र एशिया खंडमां अजोड एवं 'श्री सीमन्धरस्वामी जिनमंदिर' बहारनी दुनियाने भले आरसपाणना एक पिंडरूपे जणाय, पण वास्तवमां तो मे पूज्यश्रीना हृदय हिमालयमांथी खळ खळ खळ करती भने कोई सीमंधर महासागरनी दिशामा अविरत वहेती भक्ति गंगाना प्रगाढ फेणाना पिंड भावनानो कोई जीवंत झरो होय अम ज भावुकोने मन भासे छे 'त्यारे सीमन्धर शोभा तरंग' (सीमन्धरस्वामिजीनो महिमा दर्शावतो एक सार्थ प्राचीन गुजराती
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