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१०९.
(२३)
( ढाळ : रसिगानी) श्री सीमन्धर सुन्दर साहिबा,
मन्दरगिरि समधीर सलुणा; श्री श्रेयांस नरेश्वर नन्दन,
मुज हीयडार्नु रे हीर; सलुणा; १ सोवन वरणे दीपे देहडी,
सुमनस सेवित पाय, स० भद्रशाल लक्षणे करी राजतो,
भेटयां भवदुःख जाय; चंद्र सूरज ग्रह गण सहु प्रभु तणो,
चरण शरण करे नित्य; स. जाणे रे जित्या आप प्रभो भरे,
करे प्रदक्षिणा कृत्य, स. मध्य विदेहे विजय पुष्कलावती,
नयरी पुंडरीकिणी सार, स० तिहां विचरे भविजन मन मोहता.
सत्यकी मात मल्हार; स० मेरु महीधर परे अविचल रहे,
मुज मन एहि ज देव; स. ज्ञानतिलक गुरु पदकज भमरलो,
विनयचंद्र करे सेव. स.
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