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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4 नंदन ' सत्यकी' मायनो, वृषभ लंछन भगवान रे; जिनशु० ऋक्ष्मणि' राणीनो नाहलो, गुणमणि रयण निधान रे, जिनश ०३ 'कुंथु' ' अर ' जिनअंतरे, जन्म्या वळी व्रत लोधरे; जिनशुं० 'दशरथ' नृप व्रतना समये, भावी 'उदय' जिम सिद्ध रे. जिनशुं ०४ ज्ञानविमळ' गुणथी लह्या, लोकालोक स्वभाब रे; जिनशु ० भवोदधि पार में पामीओरे, में तुम्ह पद युग नाव रे. जिनशु ०५ (१४) ( राग : अजित जिणंदशु प्रीतडी- ओ देशी) श्री ' सीमन्धर' साहेबा विनतडी हो सुणीये ते दिन लेखे लागशे, जिण दिवस जालु हैयुं उल्लसे, पण नयणे हो जे जलपाना पिपासीओ, तस दुःखे हो करी हो लईशु श्री निरख्ये सुख थाय के; तृप्ति न थाय के; श्री सी० ||२|| जाणो छो प्रभु बहु परे, म्हारा मननी हो तो शुं ताणो छो घणुं, आवी मिलो हो मुज १०१ किरतार के; दीदार के. सी० ॥ १॥ For Private And Personal Use Only वितक वात के; साक्षात के. थई श्री सी० ॥३॥ हुं उत्सुक बहु परे कहुं, पण न गणुं हो कांई रीझ ए लक्षण रागी तणुं, तिणे भाख्यु हो सघळु अरीझ के; मनगुझ के. श्री सी० ||४|| "ज्ञानविमळ" प्रभु आपणो, जाणीने हो कीजे उच्छाह के; उत्तम आप अधिक करे, आवी मळ्या हो ग्रह्या जे बांह के. श्री सी० ||५|| <>
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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