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श्रद्धान ज्ञानने कथन करणे, सिद्ध चार प्रकार; गुरुगमे ते विरल दीसे, जे दीपावणहार, प्रभु० ३ ऐहवामां श्री 'सीमंधर', तुज कृपा जळधार; भरत मानस शमित भवभव, दुरित रज संभार प्रभु० ४ 'ज्ञानविमळ' प्रकाश प्रकटत, सहज गुण घनसार; बोघि सुरतरु सदल प्रसर्यो, एह तुम्ह उपगार, प्रभु० ५
(११)
(राग : वेलाउल) श्री 'सीमंधर' विनति, सुण साहिब मेरा; अहोनिश तुम ध्याने रहुं, मे फरजन तेग श्री सी० १ भाव भक्ति शु वंदना कर उठी सवेरा; भवदुःख सागर तारीये, जिम होय तुम नेरा. श्री सी० २ अंतर रवि जब प्रगटीयो, प्रभु तुम गुण केरो तव हम मन निमळ भयो, मिटयो मोह अंधेरो. श्री सी० ३ तारक तुम विण अवरको, नहि कहो कवण भलेरा; ते प्रभु हमकु दाखवो नहि, करु तास निहोरा. श्री सी० ४ 'नय' नितु नेहे निरखीये, प्रभु अबकी वेरा: बोधि बीज मोहे दीजीये, कहुं कहा बहु तेरा. श्री सी० ५
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