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तस्वबिन्दु २६५ दीर्घकालिकोपदेशवडे संजिनुं ग्रहण जाणवू. तेनी भावना वा.
दरनी पेठे करवी. असंज्ञितो अपर्याप्तनी पेठे जाणवा. भवसिद्धि, संज्ञीनी पेठे जाणवा. अभवसिद्धिक तो उभय शून्य जाणवा. चरमभव जेनेछे एवा जीवो तो भव्यनी पेठे अने अचरमते अभव्यवत् जाणवा. कोइ पण विविक्षित समयमा प्रतिपद्यमानक मतिज्ञानीनी प्राप्ति पक्षमां जघन्यथी एकलाभे. अने उत्कृष्टथी तो सर्व लोकमां क्षेत्र पल्योपमनो असंख्यातमो भाग लाभे. पूर्वप्रतिपन्नमां तो जघन्य अमे उत्कृष्टथी क्षेत्र पल्योपम असंख्येय भाग प्रदेश राशिममाण मतिज्ञानियो लाभे.
२६६ नाना जीवोनी अपेक्षाएं सर्वमतिज्ञानियो लोकना असंख्यात
भागने पामे. मतिज्ञाननो बे प्रकारे काल चितववा योग्यछे. उपयोगथी अने लब्धिथी, एकजीवने मतिज्ञाननो उपयोग जघन्य अने उत्कृष्टथी अन्तर्मुहूर्तमान होयछे. ते थकी उपरतो अन्य उपयोगमां गमन होयछे. सर्वलोकवर्तिमति ज्ञानियोनोआज उपयोगकाल जाणवो. आ अन्तर्मुहूर्त केवल बृहत्तर जाणवू. लब्धिनी अपेक्षाए मतिज्ञाननो काल, अवाप्त सम्यक्त्व जेनेछे एवा एक जीवने जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त जाणवो, अने उत्कृष्थी एक जीवनी अपेक्षाए सातिरेक छासठसागरोपमनो काल जाणवो. मतिज्ञानावरण क्षयोपशमरूपा लब्धि जाणवी.
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