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तत्वबिन्दुः २५९ चक्षु, अचक्षु, अने अवधिदर्शन,ए त्रणमां लब्धि अंगीकार करी
पूर्वपतिपन नियमथी होय. प्रतिपद्यमानकनी भजना जाणवी. तेना उपयोगने आश्रितो पूर्वप्रतिपन्न होय पण पतिपद्यमानक नथी. मतिज्ञानने लब्धिपणुंछे. दर्शनोपयोगमां तेनो निषेधछे माटे केवलदर्शनमां उभयाभावछे.
२६० संयतद्वारमा संयतादिक आभिनियोधिकना पूर्वप्रतिपन्न नियमतः
होयछे. प्रतिपद्यमानक पण भजनाथी जाणवा. कोइ अत्यंत विशुद्धिथी सम्यक्त्व, चारित्र युगपत् अंगीकार करेछे ते अबस्थामां ते संयत, मतिनो प्रतिपद्यमानक होयछे.
२६१ पंचज्ञान, साकार उपयोगवाला जाणवां. चार दर्शनमा अना
कार उपयोगछे. साकार उपयोगमा पूर्वप्रतिपन्न नियमथीछे. प्रतिपद्यमानक तो भजनाथी. अनाकार उपयोगमां तो पूर्वप्रतिपनज होयछे. पण प्रतिपद्यमानक नथी. कारणके अनाकार उपयोगमा लब्धिनी उत्पत्तिनो प्रतिषेध कर्योछे माटे.
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