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(८६)
तत्त्वबिन्दुः २५२ मन वचन अने कायाना समुदाये त्रणयोगमां पंचेन्द्रियनी पेठे
जाणवू, मनरहित कायवाणीयोगियोने तो विकलेन्द्रियनी पेठे जाणवू. केवलकाययोगीओ तो एकेन्द्रियनी पेठे जाणवा.
२५३ त्रण प्रकारना वेदमा पंचेन्द्रियनी पेठे भावना करवो.
२५४ अनंतानुबंधी चार प्रकारना कपायमांसास्वादन अंगीकार करी
पूर्वप्रतिपन्न लाभेछे पण प्रतिपद्यमानक नहि. बाकीना बार कषायमां पंचेन्द्रियनी पेठे भावना करवी.
२५५ भावलेश्या अंगीकार करी कृष्णादिक त्रणमा पूर्वपतिपन्न होय
पण प्रतिपद्यमानक नहि. प्रशस्त त्रणलेश्यामां पंचेन्द्रियनी पेठे जाणवं.
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