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( ८ )
तत्वबिन्दुः
२३५ क्षेत्र, काल, वे सामान्यथी द्रव्यमांज समाय छे. केवल भेदवडे ते रूढ छे. माटे पृथक ग्रहण कर्यु छे. एम जाणवुं.
२३६ एकेन्द्रियमां मतिज्ञान नथी. मतिज्ञाननो तेमां पूर्वमतिपन्न वा प्रतिपद्यमानक भेद नथी.
२३७ मनःपर्याय ज्ञानियो सर्वे पूर्वप्रतिपन्न होय छे. पण प्रतिपद्यमानक नथी. सम्यक्त्व सहचरित प्राप्त मतिज्ञानने पश्चात् अप्रमत्तसंTaratrani मनःपर्यव ज्ञाननी उत्पत्ति ले माटे. सम्यक्त्व सहचरित चारित्र लाभमां तो मनःपर्यव ज्ञान उत्पन्न थतुं नथी.
२३८ अपोह - अपाय कहेवाय छे. ते मतिज्ञाननो तृतीय भेद छे. अपाय निश्चय कहेवाय छे. धृतिने धारणा कहे छे. मति मज्ञा शब्दवडे सर्व मतिज्ञान कहेवाय छे.
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