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तत्वविन्दुः
मयी अन्नपाणीने देखे तो सविष आहारपाणी निर्विषपणे प. रिणमे विष महा विष देव पण दृष्टिविष लब्धिधारक साधुनुं तेज सही शके नहीं.
हवे सातमी रसऋदिनुं स्वरूप कहे.
रसऋद्विना छ भेद कहेछे-१ आस्यविषालब्धि, २ दृष्टिविपालब्धि, ३ क्षीरावीलब्धि, ४ मध्वाश्रवीलब्धि, ५ सर्पिराश्रवी लब्धि, ६ अमृतश्राविलब्धि.
१ आस्यविषा लब्धि-प्रकृष्ट तपोवली साधु कोपथी बोले के तुं मरी जा एम बोलतांज जेम विष खाधेल मृत्यु पामे सेम साधुना कोपथी मृत्यु पामे.
२ दृष्टिविषालब्धि-तपोवलि साधु क्रोधदृष्टिथी जेने देखे ते
जीव तत्काल जेम विषवायुथी वृक्ष पडे तेम मरी जाय.
३ क्षीरावी लब्धि-लुखो आहार साधुने कोइ आपे पण साधुना हस्तमां क्षीररस समान आहार थाय. कोइ शरीरे क्षीण दुर्बल होय तेने साधु पुष्टिकर वचन कहे तो क्षीणता दुर्बलपणुं नाश पामे.
४ मधुश्राविणी लब्धि-कटुक कषायलो नीरस आहार साधुने दीपो होय. ज्यारे ते आहार साधु हाधमां ले त्यारे मधु
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