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ससा ते कथंचित मूल द्रव्य सचायी अभिन्न येतेनी अपेक्षाए सविकल्पक चारभंगीनो अन्तर्भाव, निर्विकल्पक संग्रहादि अण नयमां थाय छे. आ पात सम्मतितर्क द्वितीय काण्ड पाना ४७ माए छे.
१५३ सप्त भंगी केम थाय छे ? आठमी यती नथी तेनुं शृं कारण
छे? आठमी भंगीनी कल्पनानो अभाव छे माटे. ते बतावे छे. प्रथम अने बीजो भंगी मेळवीने आठमी भंगी बनावशो तो स्यात् अस्तिनास्तिरूप चतुर्थभंगीमां तेनो अन्तर्भाव यवायी अष्टमभंगी बनशे नही. पहेली अने त्रीजी भंगी मेळवीने जो आठमी भंगी सिद्ध करशो तो ते नहि सिद्ध थतां तेनो पांचमी भंगीमां अन्तर्भाव थशे. जो बीजी अने त्रीजी भंगी मेळवीने आठमी भंगी करवा धारशो तो ते नहीं बने अने तेनो षष्ठी भंगीमां अन्तर्भाव थशे. जो पहेली, बीजी अने त्रीजी भंगीने मेळवीने अष्टम भंगी करवा धारशो तो ते नहीं बने अने तेनो सातमी भंगीमां अन्तर्भाव थशे. तथा प्रथमादि त्रण भंगीनी साये चोथी आदि भंगीयो जोडीने आठमी भंगी करवाथी पुनरुक्त दोष प्राप्त थाय छे. यथा स्यात् अस्ति अस्ति नास्ति एम पहेली अने चोथी भंगी मेळवीने आठमी करवाथी पुनरूक्ति दोष प्राप्त थयो. कारण के चोथी भंगीमां अस्ति छे. तो तेनी साथे प्रथम भंगी जोडवानी जरूर नथी. माटे ए सप्तभंगी उपर अष्टमभंगी सिद्ध थती नथी.
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