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(१९१)
तत्वबिन्दुः ५५० हे आत्मन् तुं ज्ञानदर्शन चारित्रमयछे.तुं बाह्य दृश्यपदार्थमां नथी.
चतुर्दश गुण स्थानकमां पड़ गुण भागनी हानिवृद्धि संभवेछे.
६५१ जीवना पांचसो त्रेसठ अने अजीवना पांचसो त्रीस भेद
थायछे. षड्मुव्य, नव तत्त्व, सातनय, सप्तभंगी आदि तत्त्वनुं स्वरूप प्ररूपनार त्रिशला नन्दन सर्वज्ञ श्री वीरप्रमुछे, तेमने त्रिकरणयोगे द्रव्यभावे अनन्तशः वन्दन थाओ.
६५२ योगियोने ध्यानभक्ति प्रतापे धरणेन्द्र अने पद्मावती प्रत्यक्ष
थायछे एवा जेना शासन देवताओछे. ते श्री पार्श्वनाथ भगवान्, आत्मानी अनन्तशक्तिना प्रकाश माटे थाो. सकलविघ्न वृन्दनो क्षय करी परममंगलमा ध्येयरूप निमित्तपणे परिणमो. पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ अने रूपातीत ध्यानथी पार्श्वप्रभुने भेदाभेदपणे ध्यावतां मूर्य प्रकाश विस्तारनी पेठे पदे पदे अनन्तशक्ति प्रताप विकास थाओ अने अनन्त मंगलधामभूत आत्मा थाओ.
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
इतिश्री योगनिष्ठ मुनि महाराजश्री बुद्धिसागरजी
विरचित तत्त्वबिन्दु ग्रन्थ समाप्तः
मुकाम. अमदावाद झबेरी वाडो.
आंवली पोळनो उपाश्रय. सं. १९६६ मागसर शुदी ५ शुक्रवार.
लि. मुनि, बुद्धिसागर.
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