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सत्वबिन्दु. गुणठाणामा स्नातक होय, छद्मस्थावस्थामा तीर्थकरने कपाय कुशील चारित्र होयछे.
उत्तराध्ययन अध्ययन. ३४ ५६८ कृष्णलेश्याना परिणाम-पंचास्रवना सेवनार, मन वचन का
यानी गुप्ति नहि पालनार, षट्कायनो नाश करनार, आरंभ सारंभना तीव्र परिणाम सहित, सर्व जीवोने अप्रिय, आभव अने परभवतुं अस्तित्व नहि स्वीकारनार, क्रूरपरिणामवान, इत्यादि अशुभ कृष्णलेश्याना परिणाम जाणवा.
५६९ नीललेश्याना परिणाम-इर्ष्या करवी. परजीवना अवर्णवाद
बोलवा. अत्यंत कदाग्रह करवो. तपरहित अनाचारता. भाव सहित विषयलंपटता. अष्टमदनुं करवू. शातानुं इच्छQ. आरंभ करवो. सर्व- अहित करवू, इत्यादि
५७० कापोतलेश्या-वांकुं बोलवू, कपट करवू, निजदोष ढांकवापणुं,
मिथ्यादृष्टित्व, अनार्यत्व, वाणीथी जीवोने दुभववा. मार्मिक बचननुं बोलवू, चोरी करवी, अन्यनी संपत्ति देवी स्वयं पाप व्यापार करवो कराववो. इत्यादि
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