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तस्मबिन्दुः ५०८ अशुभ अध्यवसायथी प्रसनचंद्र राजर्षिनी पेठे दुर्गति कर्मदलिक
प्राप्त थायछे. अने शुभ अध्यवसायथी प्रसन्नचन्द्रनी पेठे तुर्तज केवलज्ञान थाय छे.
५०९ हे भव्यो ! दुर्लभ जिनवचनमा शंका न करो!!! अनादर न
करो. रुचिथी तेमां आदर करो.
५१० शुभाशुभ परिणामनी तरतमतानुसार न्यूनाधिक कर्मबंध
थायछे. सांसारिक स्नेह क्षणिक अने दुःखनी परंपरा देनारछे.
५११ एक दीवसमां शुभाशुभ परिणाम, जीवने घणीवार थायछे.
५१२ परिणामनी विचित्रताछे. माटे पापी पण शुभ परिणाम पापी
धर्मी बनेछ,
५१३ बद्ध, निधत्त, निकाचित अन स्पृष्ट एवा अनेकधा कर्मभेदोथी
आत्मा बंधायछे. बद्धकर्म कलुषित जल समानछे अथवा दो
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