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तवविन्दु.
( १३३ )
४१३ एकेन्द्रियमां आहारादि दश संज्ञा छे, किन्तु ते विशिष्ठ संज्ञाना
भावे असंज्ञी कहेवा छे. कोडीथी कोइ धनवान् कहेवातो नयी. सामान्य रूपथी कोइ रूपवान कहेवातो नथी तेवी रीते मोहनीय आदि जन्य अविशिष्टसंज्ञाथी एकेन्दिय संज्ञी गणाता नथी. (वि.)
४१४ ज्ञानाद्वैतवाद मत प्रमाणे सर्वज्ञेय वस्तु ज्ञानरूप ठरवाथी केवलज्ञानना पर्याय सिद्ध ठरेछे, पण वस्तुतः जोतां केवलज्ञानना पर्याय अने परपर्याय अनंत सिद्ध ठरेछे. (वि.)
४१५ सर्व जीवोने अक्षरनो अनंतमो भाग उघाडोळे ते श्रुतज्ञानमां जन्य, मध्यम, उत्कृट भेदथी संभवेले. सर्वथी जघन्य निगोड़िया जीवने, सर्वथी उत्कृष्ट संपूर्ण श्रुतज्ञानिने, निगोह अने संपूर्ण श्रुतधारकनी मध्यनो भाग मध्यम भेदमां गणवो. (वि)
४१६ दृष्टिवादोपदेशिकी संज्ञा करतां दीर्घकाली की संज्ञा अविशुद्ध छे. दीर्घकालीक करतां हेतुवादोपदेशिकी संज्ञा अविशुद्ध छे. (वि.)
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