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तत्वबिन्दु.
(1) १ स्नेहप्रत्यय स्नेहनिमितस्पर्धकनी प्ररूपणाने स्नेहमयय
स्पर्धक प्ररूपणा जाणवी. २ शरीरबंधननामकर्योदयथी परस्पर बंधाएल शरीर पुद्ग
लोनो स्नेह अंगीकार करीने स्पर्धक प्ररूपणाते नामपत्यय
स्पर्धक प्ररूपणा. ३ प्रकृट योगकारणथी जे ग्रहण करेलां पुद्गलो, तेना स्ने. हने लेइ स्पर्धकनी प्ररूपणाते प्रयोग प्रत्यय स्पर्धक प्ररूपणा जाणवी. केवलयोग प्रत्ययथी बंधाता कर्मपरमाणुओमां योगस्थाननी वृद्धिथी स्पर्धकरूपे जे रस वृद्धि पामे छे ते प्रयोग प्रत्ययस्पर्धक.
४०९ अनुभाग बंधमां चौद अनुयोग द्वार जाणवा योग्प छे. ते पा
प्रमाणे-१ अविभाग प्ररूपणा, २ वर्गणा प्ररूपणा, ३ भन्तर प्ररूपणा, ४ स्थान प्ररूपणा, ५ कंडक प्ररूपणा, ६ षट्स्थान प्ररूपणा, ७ अधस्तनस्थान प्ररूपणा, ८ वृद्धि प्ररूपणा, ९ समय प्ररूपणा १० यवमध्य प्ररूपणा, ११ ओजो युग्म प्ररूपणा, १२ पर्यवस्थान प्ररूपणा, १३ अल्प बहुत्व प्ररूपणा, १४ स्पर्धक मरूपणा. (३) त्रीजी आ छे,
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