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तत्वबिन्दुः
३३५ मतिज्ञान अने श्रुतज्ञान वे परोक्षछे. अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान,
अने केवलज्ञान प्रत्यक्षछे,
३३६ अवधिज्ञानतुं जघन्यक्षेत्र अंगुलना असंख्यातमा भागनुंछे. अने अवधिज्ञानी उत्कृष्टः अलोकमां पण लोक प्रमाण असंरूयेय खंडने देवी शके. अलोकमां रूपी पदार्थ नथी पण आतो फक ज्ञाननी शक्ति बतावीछे.
३३७ परमावधि अने मनः पर्यवज्ञानमां विपुलमति-ए वे अवश्य haeज्ञान पामीने मुक्ति जाय छे=ते वे पुनःसंसारमा परिभ्रमण करता नथी.
३३८ चक्षुदर्शननो जघन्य अन्तर्मुहूर्तकाल अने उत्कृष्टतः असंख्यात काल जाणवो. अचतुदर्शननो उत्कृष्ट अनंतकाल जाणवो. व्यवहारराशि जीवनी अपेक्षाए अचक्षुदर्शननो जघन्यकाल अन्तमुहूर्त जाणवो. व्यवहारराशिमां अचक्षुदर्शननो उत्कृष्ट अनन्त कालछे,
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