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तबिन्दुः
(९५) २८१ श्रुतनिश्रितना अठावीस भेद, अने औत्पादिकी आदि अश्रुत
निश्रित मतिना भेद जाणवा.
२८२ वचन पर्याय पग अनन्तछे अने अर्थपर्याय पण अनन्तछे.
एम विशेपावश्यकमां कथ्युंछे.
२८३ मतिज्ञानलब्धि काल, जघन्यथी समकितवंतने अन्तर्मुहूर्तकाल
जाणवो. तेथकी पर मिथ्यात्वमा गमन अने विकल्प केवलज्ञाननी प्राप्ति. मतिनो लब्धि काल उत्कृष्टतः छासठ सागरो. पम अधिक जाणवो. ते बतावेछे. कोइ साधु मति आदि ज्ञान सहित होय. अने पूर्व कोटि वर्ष पर्यंत चारित्र पाली चार अनुत्तर विमानमां जाय, त्यां तेत्रीस सागरोपमनुं आयुष्य भोगवी पुनः श्रमतिपाति मतिज्ञानसहित मनुष्यभवमा आवी देशोन पूर्वकोटि प्रव्रज्या पाली पुनः चार अनुत्तर विमानमा जाय, पुनः अप्रतिपाति मति आदि ज्ञान सहित मनुष्यगतिमां आवी, पूर्व कोटी वर्ष दीक्षा पाळी सिद्धि पामे. एवं चार अनुत्तर विमानमां गएलाने छासठ सागरोपम अधिक देशोन त्रग पूर्व कोटि वर्ष थाय. अथवा अच्युत देवलोकमां बावीस सागरोपमनी स्थितिए त्रण वार उत्पन्न थाय. अने देशोन पूर्ण
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