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श्री बाहुजिन स्तवन.
हिवे-भावनाये कालधर्मनी शुद्धता कहे छे. कालधर्म लक्षण, धर्मसंग्रहणीये कहीये छे. पवत्तण रूवो कालो दवस्सचेव पज्जाओ सोचेव तउधम्मो कालस्स वजस्सजोए तथा तत्त्वार्थे विशेषावश्यके पंचास्तिकायनी वर्तना तेहनेज कालपणो को छे, तथा अनुयोगदार सूत्रे पिण कह्यो छे जे किं भंते अद्धा समएतिवुच्चति गोयमा जीवाचेव अजीवाचेव तिहां पिण जीव अजीवनी वर्तना ते काल तथा स्वद्रव्य स्वक्षेत्र स्वकाल स्वभावत्वेन स्यात् अस्ति ए पद संमति तथा रत्नाकरावतारिका मध्ये छे, ए अस्तिपणो ते स्वधर्मेज हवे. परधर्मनो अस्तिपणो ते द्रव्यनुं धर्म नहि. ते माटे काल उत्पाद व्ययरूप वर्तना ते स्वधर्म छे. आत्माना विशेष पर्यायास्तिमयी परिणमन छे. ते उत्पाद तथा व्यय तथा ध्रुवपणे जे आत्मा परिणमे तेहने सहेजे परिणने छे. इतले उत्पाद व्यय ते कोइने पर निमित्ते यतो नथी. ते माटे सहेजे ए परिणति थाय छे. संयोगीभावनो व्यय ते छेदन कर्यों थाय छे अने उत्पाद ते कोइ योजन कहेता कोइकने जोरे थाय छे, अने आत्मगुणनो उत्पाद ते परभावनी योजना विना थाय छे. ए. उत्पाद वस्तु स्वभावे समाय छे. वस्तु धर्म समाय छे. ए काल परिणति सर्व द्रव्यनी किवारे हगाती नथी. ते वस्तुपणे तिमहिज परिणमे छे. ते वस्तुवमें दिखाड्या मादे कह्यो छे. तथा गुणनी वर्तना ते गुणावरक कर्म रोवे छे. ते तो रोधकपणो हिंसा छे, ते निरावरण अवस्था प्राग्भावी वर्तना ते हिवें हणाती नथी. ते माटे एहने अहिंसक वर्तना कहीए. ते नीपनी छे. हे परमेश्वर परमदयाल तुम्हें स्वदया संपूर्ण नीपजावी छे श्री यशोविजयोपाध्याये निजदया परदयानो स्व
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