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श्री बाहुजिन स्तवन.
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चैत्यशब्दे जिन प्रतिमा छे. वली भगवती सूत्रे चमर अधिकारे सौधर्म इंद्रे अरिहंत तथा अरिहंत प्रतिमानी आशातना एक कही छे तथा करेमिभंते सामाइयं ए शब्द उच्चरतां " भंते " थापनानो संबोधन छे. तथा अंगचूलीया सूत्रे कह्यो छे जे गुणीनी थापना गुणी समान त्रेवडवी तथा द्रव्यनिक्षेपो जंबूद्वीपपन्नत्ती मध्ये निर्वाण कल्याणके श्री रुषभदेवना शरीरने नवरावी चंदन विलेपन करी फूल चढावी ग्रहणा पहिरावी ने शक्रस्तव कर्यो छे तथा उववाईसूत्रे अप्पे गइया वंदणवत्तियाए अप्पेगइया पूअण वन्तियाए ए पाठे फूलनी पूजा ते गवेषी छे. तथा नंदीसूत्रं तिल्लोक्क महिय पूइएहिं अरिहंते पनवीए इत्यादी पाठ जोवो. तथा भाव निक्षपोपरम केवलादि गुणमयी श्री अरिहंतनी सेवना वंदण नमन ध्यान ते च्यार निक्षेपा जे नाम अरिहंत, थापना अरिहंत, द्रव्य अरिहंत, भाव अरिहंतने संभारतां मिथ्यात्व कुश्रद्धादिक दोष विलाय कहेतां जाय. हे प्रभुजी तारा नामादिकपिण परजीवने आत्मगुणना कारण छे. इतले तेपिण दयानाज हेतु छे ए चोथो दयापणो छे.
आतम गुण अविराधना, भाव दया भंडार प्रभुजी । क्षायिक गुण पर्याय,
नवि पर धर्म प्रचार, प्रभुजी ॥ बाहु० ॥५॥ ए सर्व उपगारीपणे परजीवना हितरूप, द्रव्यभावपर दया. वंतपणो दाख्यो. पिण जे पोताना आत्ममध्ये अहिंसकपणो निपनो छे. ते दयावंतपणो ओळखावे छे. तिहांजे अनादि
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