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साधुपद सइयाय.
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द्रव्य साधनपणारी विघन ते विवननो निवारणो एहवे थये आत्मारे सहिज निवारणो छे, तेथी नैमित्तिक कारण कयो तिको नैमित्तक कारण सुप्रसिद्ध - प्रसिद्ध हिज छे, ए सर्व द्रव्य साधन छे, द्रव्य साधनथी तथा विध साधनता नथी ॥ १० ॥
भावें साधन जे इक चित्तथी रे,
भाव साधन निज भाव ।
भाव सिद्ध सामग्री हेतु तेरे, निस्संगी मुनिभाव ॥ सा० ॥ ११ ॥
द्रव्य साधन को, हवे निज स्वभाव साधनथी स्वस्वरूप सिद्ध थाय ते लिखे ते भावसाधन छे, तेथी भावें साधन स्वरूपानुयायी जो भावसाधन आत्मिक स्वरूपने सिद्ध करे एहवो जे भावसाधन. जे इक चित्तधीरे जीको एक चित्तवृतियें करनें तदाकारभावपर्णे प्रवर्त्तनुं ते भावसाधन कहिवाय, ए लिखत शुक्लध्यानना चोथा पायानो छे. हिवे रूपातीतध्यान कहे छे, निरंजन निर्मल संकल्प विकल्प रहित अभेद एक शुद्धसत्तारूप निर्मल चिदानंद तत्त्वामृत असंग, अखंड, अनंत गुणपर्यायरूप आत्मस्वरूपनो ध्यान ते रूपातीत ध्यान जाणवो. तेथीज सिझायकर्त्ता आगळ पदमां इम गुथ्यो छे, भावसाधन भावे साधन छे ते निज भाव निज स्वभावपणो छे आत्मारो. हिवे ते जे निज भाव ते निज भावयी भावसिद्ध सामग्री भाव निज स्वभावनी सिद्धता निज स्वभावनो सिद्ध थाउं तद्रूप सामग्री ते सामग्री संबंधीहेतु सामग्री संबन्धि कारण छे. तेरे नाम ते कारण स्योकिसो निस्संगी सुनिभाव निस्संगी
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