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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचेंद्रि विषय त्याग. इच्छा कीजे ए मुनिभावनी रे, ज्युं लहीये अनुभव परमनिधान रे. धन धन जे० ३७ खरतर गच्छ पाठक दीपचंदनो रे, देवचंद्र वंदे ए मुनिराय रे सकल सिद्ध सुख कारण साधुजी रे, भव भव होज्यो सुगुरु सहाय रे, धन धन जे० ३८ इति श्री गजसुकुमाल सइझाय समाप्त. पंचेद्रिय विषयत्याग. पद. विषयनको परसंग चेतन छोड दे, गिरोई फीरत विलालत फरस वश बंधोई फीरत मातंग. चे० १ कंठ छिदायो मिन आपणो रसनाके परसंग; नेत्र विषय कर दीप शिखा, जल जल मरत पतंग. चे० २ खटपद जलजमांहि फस मूरख, खोयो अपनो अंग, विण शब्द सुण श्रवण ततखिन, मोही भयो रे कुरंग. चे० ३ एकएक इंद्री चलत बहु दुःख, पायो हे सरभंग, पांचो इंद्री चलत महा दुःख, ईभ भाषत देवचंद. चे. ४ आत्म पद. अहो जिनवरजी निके नयण निहारे, यामे केवल दर्शन झलकत. अतितिखे अनिहां रे अहो० १ सुमता सोहन कुमता खोयन, भविकु लागत प्यारे. अ० २ देवचंद्र जैसे प्रभु निरखत, जिन निज जनम सुधारे. अ० ३ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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