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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨ ढंढणमुनिजीनी सझाय. नयर लींबडी मांहे रहीने, वाचंयम स्तुति गाइ । आत्म रसिक श्रोता जन मनने, साधन रुचि उपजाई रे ॥ अनु० ॥ १७ ॥ इम उत्तम गुण माला गावो, पावो हरष वधाइ । जैन धरम मारग रुचि करतां, मंगल लील सदाई रे || अनु० ॥ १८ ॥ संपूर्ण ॥ श्रीरस्तु ॥ ॥ अथ ढंढणमुनिजीनी सझाय ॥ ॥ वनिता विहसीने विनवें ॥ ए देशी ॥ धन धन ढंढण मुनिवरु, कृष्णनरेसर पुत्रों रे; गुणमणि लवणिम शोभतो, लखमी ठीला जुत्तो रे. धन० १ कोमल कमला कामिनी, मूकी एक हजारो रे; नैमित्रचनें वैरागीयो, लीवो संजम भारो रे. ग्रहणा ने आसेवना, शीखी शिक्षा सारो रे; विचरता आव्याजी द्वारिका, नेमि साथै सुखकारो रे. धन० ३ एकदिन गोचरी संचर्या, करता गवेखणा शुद्धि रे; आहार कांइ मिळयो नही, मुनि मन समता बुद्धि रे. धन० ४ मुनि चिंते पुद्गल बलें, श्यो निजगुण अभ्यासो रे; उत्सर्गे ( उछरंगें) आतमचलें, कीजे शिवपद वासो रे. धन० ५ शक्ति यथामें आदरे, अपवादें अनेको रे; सहजें जो संवर वधे, तो न ग्रहे पर टेको रे. धन० ६ ७ For Private And Personal Use Only धन० २
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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