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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री प्रभंजनानी सझ्झाय. सयोगी केवली थया प्रभंजना, लोकालोक जणायो । तीन कालनी त्रिविव वर्त्तना, एक समे ओलखायो रे ॥ अनु० ॥९॥ सर्व साधवीये वंदना कीधी, गुणी विनय उपजायो । देव देवी तव स्तवे गुणस्तुति, जगजय पडह वजायो रे ॥ अनु० ॥ १० ॥ सहस्र कन्यका दीक्षा लीधी, आश्रव सर्व तजायो । जग उपगारी देश विहारे, शुद्ध धरम दीपायो रे ॥ अनु० ॥११॥ कारण जोगे कारज साधे, तेह चतुर गाइजे। आतम साधन निर्मल साधे, परमानंद पाइजे रे ॥ अनुभव० ॥ १२ ॥ ए अधिकार कह्यो गुणरागे, वैरागे मन भावी । वसुदेव हाडतणे अनुसारे, मुनि गुण भावना भावी रे ॥ अनु० ॥ १३ ॥ मुनि गुण थुणतां भावविशुद्धे, भव विछेदन थावे । पूर्णानंद पद एहथी उलसे, साधन शक्ति जमावे रे ॥ अनु० ॥ १४॥ मुनि गुण गावो भावो भावना, घ्यावो सहज समाधि । रत्नत्रयी एकत्त्वे खेलो, मिटे अनादि उपाधि रे ॥ अनु० ॥१५॥ राजसागर पाठक उपगारी, ज्ञानधरम दातारी । दीपचंद पाठक खरतर वर, देवचंद्र सुखकारी रे॥ अनु०॥१६॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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