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॥ अथ श्री प्रभंजनानी सझ्झाय लिख्यते ॥
॥ ढाल १ ली ॥ नाटकीयानी नंदनी ॥ ए देशी ॥ गिरि वैतान्यने ऊपरे, चक्रांका नयरी लो ॥ अहो चक्रांका ० ॥ चक्रायुध राजा तिहां, जीत्या सवि वयरी लो ॥
अहो जीत्या ० ॥ १ ॥ मदन लता तसु सुंदरी, गुण शील अचंभा लो || अहो गुण० ॥ पुत्री तास प्रभंजना, रूपे रति रंभा लो ॥
अहो रूपे० ॥ २ ॥
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लो || अहो बहु० ॥ अहो वर० ।। ३ ।।
विद्याधर मूचर सुता, बहु मिलि इक पंते राधावेध मंडावियो, वर वरवा खंते लो || कन्या एक हजारथी, प्रभंजना चाली लो || अहो प्रभंजना० ॥ आर्य खंडमां आवतां, वन खंड विचाली लो ॥
अहो वन० ॥ ४ ॥
|| अहो बहु० ।।
निग्रंथी सुप्रतिष्टता, बहु मुगणी संगे लो साधु विहारे विचरतां वंदे मन रंगे लो ॥
१ साध्वीजी.
आर्या पूछे ए वडो, उमाहो स्यो छे लो || अहो० ॥ विनये कन्या विनवे, वर वरवा इच्छे हो ॥
अहो वर० ॥ ६ ॥
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अहो वंदे ० ॥ ५ ॥