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॥ ॐ नमः सिद्धं श्रीगुरुभ्योनमः ।। ॥अथद्रव्यप्रकाशभाषालिख्यते ॥
॥ दोहा ।। अज अनादि अक्षयगुणी, नित्य चेतनावान् । प्रणमु परमानंदमय, शिवसरूप भगवान् ॥ १ ॥ ॥ अथस्याद्वादभावको नमस्कार ।।
॥ संवैया इकतीसा ॥ जाकै निरखत संते थिरतासु भाव धेरै, वरे निज मोक्षपद हरे भवतावको, करमको बंध वारे मोहको विडारडारे सारे निजसकति वधारे ज्ञानदावको एकानेकरूप जानै नित्यानित्यभाव ठान आपा पर भेदकरी ग्रहे स्व सुभावको, अक्षर त्रिगुण इंद कर्मजालसो अफंद नमतहे देवचंद स्यादवादभावका. ॥ २ ॥
॥ अथअध्यात्ममाहात्म्यकथनम् ।।
॥ सवैया इकतीसा ॥ अध्यात्मभावको प्रभाव कहो कहा ताहि जाको महिमान ज्ञान जगतमे गायोहे, याहिको सभाव लहि आपा पर भेद गहि सम्यक्सुभावमहि बोधिबीज वायोहे; घातकी अघाती भेद कर्मको मूल छेदि वेद निजभावको परमभाव आयोहे, रिषभदेवाधिदेव अध्यात्मभाव सेव अमल अखंडू निज केवलको पायोहे. ॥३॥
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