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अष्ट प्रवचन माताना सझ्झाया.
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पण अभिसंधिज वीर्ययोजी, कोम ग्रहे परभाव ॥ मन० ॥४॥ इम पर त्यागी संवरीजी, न ग्रहे पुद्गल खंध। साधक कारण राखवाजी, अशनादिक संबंध ॥ मन० ॥ ५ ॥ आतम तत्त्व अनंतताजी, ज्ञान विना न जणाय । तेह प्रगट करवा भणीजी, श्रुत सझ्झाय उपाय ॥ मन०॥ ६ ॥ तेह जेहथी देह रहेजी, आहारे बलवान् । साध्य अधूरे हेतुनेजी, केम तजे गुणवान् ॥ ७ ॥ तनु अनुयायी वीर्यनोजी, वर्तन अशन संजोग। वृद्ध यष्टि सम जाणीनेजी, अशनादिक उपभोग ॥ मन० ॥८॥ जो साधकता नवी अडेजी,
तो न ग्रहे आहार । 128
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