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साधुनी पंच भावना.
पर गुण पर्यायनो भोगी जीव नथी. अशुद्ध निश्चये रागादि अशुद्धतानो भोगी छे पण शुद्ध निश्चयनये पोतानुं शुद्ध स्वरूप जाण्या पछी पोताना ज्ञानानंद आदि अनंत शुद्ध स्वभावनो भोगी छे एम स्याद्वाद एज गुणनुं घर छ । ॥११॥
एक अनेक स्वरूप ए तु०॥ नित्य अनित्य अनादि ॥ भ० ॥ सदसद्भावे परिणम्या ॥ तु०॥ मुक्त सकल उन्माद ॥ भ० ॥ १२ ॥
अर्थः--आत्मा पोताना परम चेतनत्व स्वभावे निश्चय अनंत पर्यायनो एक पिंड एक रूप छे अने ज्ञान दर्शन चरण सुख वीर्यादि के व्यवहारे अनेक रूप छे. द्रव्यार्थिकनये नित्य छे. नवा नवा पर्याय परिणमवे पर्यायार्थिकनये अनित्य छे. स्वद्रव्यादिके सत्य अने परद्रव्यादिके असत्य छे. एम सर्वे द्रव्यो सकल समय सदसद्भावे परिणम्या अनादि सिद्ध छे. माटे मोह मदिरानो उन्माद छोडी यथावत् वस्तु स्वरूप जाणी परद्रव्यनी ममता छोडी शुद्धात्म तत्त्वमां लीन थर्बु जोइए ॥ १२ ॥
जप तप करिया खपथकी ॥ तु०॥ अष्ट करम न विलाय ॥ भ० ॥ ते सहु आतम ध्यानथी ॥ तु०॥ क्षणमें खेरू थाय ॥ भ० ॥ १३ ॥
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