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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधुनी पंच भावना. एक रूप अभ्यास\ ॥ तु० ॥ शिव सुख छे तसु गोद ॥ भ० ॥ १०॥ अर्थः-आत्म शुद्धतानो अनुभव करतां परम प्रमोद उपजे अने पुद्गल विषय अनुभव रूप अशुद्धता टले. जे मुनि अनंत लक्षणमयी पोताना ज्ञायक एक रूपनो अभ्यास करेध्याय तेने मोक्ष सुख पोतानी गोदमां एटले पोताना खोलामांज छे ॥ १० ॥ बंध अबंध ए आतमा ॥ तु०॥ करता अकरता एह ॥ भ०॥ एह भोगता अभोगता ॥ तु०॥. स्याद्वाद गुण गेह ॥ भ० ॥ ११ ॥ अर्थः-परद्रव्यना ममत्वथी बंधायलो आत्मा द्रव्यकर्म तथा भावकर्म बांधे छे पण शुद्ध आत्मस्वरूप जाणी पर पारिणामिकता त्याग्या पछी स्वस्वरूपमां रमे त्यारथी ते अबंध छे. वली व्यवहारनयथी द्रव्यकर्म अगर पुद्गल वर्गणा, जीव वर्गणी जीव बांधे छे अने निश्चय नयथी पोताना स्निग्ध रूक्षगणे करी पुद्गल परमाणुआ अगर पुद्गल वर्गणा आपसमां पुद्गलो साथे बंधाय छे पण जीव, पुद्गलो साथे बंधातो नथी. व्यवहार नयथी जीव, द्रव्य कर्मनो अने गाम नगर घट पटादिनो कर्ता कहेवाय पण निश्चयनययी गाम नगर के घट पट तथा द्रव्यकर्म पुद्गल वर्गणा आदिनो का जीव नथी. पण स्वस्वभावनो कर्ता छे. रागादि वशे पर गुण पर्यायनो भोगी जीप कहेवाय पण निश्चय नययी For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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