________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
साधुनी पंच भावना.
नवे नवे समये नवा नवा पर्याये खट्गुण हानिवृद्धिपणे ध्रुव छतां उत्पाद् व्ययपणे परिणमे छे. एवो अनित्य स्वभाव छतां पण नित्य स्वभाववालो अने स्याद्वाद परिणामी आत्म स्वभाव ध्यावो, पोताना द्रव्य क्षेत्र काल अने भावे सदा सत्य स्वभाववंत आत्मा छे अने पर द्रव्य क्षेत्र काल अने भावे असत्य छे. माटे हे मित्र ! असत्य तजि सत्य स्वभावमयी आत्म स्वरूप ध्यावो ॥७॥
निज गुण रमतो राम ए॥ तु०॥ सकल अकल गुण खाण ॥ भ०॥ परमातम पर ज्योति ए ॥ तु०॥ अलख अलेप वखाण ॥ भ०॥८॥
अर्थः--आत्मा पोताना शुद्ध गुणमां रमतो पोतेज राम छे, एटले परम आरामी छे. वली बुद्धिथी कली शकाय नहीं एहवो अकल अने सकल गुणनी खाण छे. वली ए परमात्मा छे, परमभावनो भोगी छे, सूर्य चंद्र तारा नक्षत्र रत्न अग्नि आदिनी व्यावहारिक ज्योतिथी पर एटले ज्ञान दर्शन रूप अलौकिक परम ज्योतिवंत छे, वली छद्मस्थने पूर्ण लक्षमां आवे नहीं एहवो छे. वली जेम आकाशने कर्दमादि लेप लागे नहीं तेम आत्म अंगे पुद्गल लेप लागे नहीं एहवो छे, पण जे मूढो पुद्गलमा पोतापणुं जाणे माने छे तेने मिथ्यात्व रागादि लेप लाग्यो कहिये. पण शुद्धनये जेने स्वस्वरूपमां लक्ष छे तेने कर्म लेप लागतो नथी एहवो आत्मा सिद्धांतोमा वखाण्यो छे ॥८॥
124
For Private And Personal Use Only