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साधुनी पंच भावना.
www.mmmmmmm श्वता परतंत्र चल मल जड छे, तेथी शुं स्नेह करवो ? के जेना वडे शुद्ध आत्मिक स्वतंत्र आनंदनी हाणी अने अज्ञान मिथ्यात्व कषाय जन्म जरा मरणादिनी वृद्धि थाय छे तो एवा दुःखदाई पुद्गल पर्यायो उपर कोण मूर्ख स्नेह करे ॥३॥
जिम बालक वेलू तां, घर करीय रमंत। तेह छते अथवा ढहे, निज निज गृह जंत ॥ रे जीव० ॥४॥
अर्थः-जेम बालक वेलु अने धूलनां घर करी रमे छे अने ते भागेथी अथवा तो तेने पड्यां मुकीने पोत पोताने घेर जाय छे. तेम पौद्गलिक वैभव पड्यो मुकीने अथवा नाश थयेथी संसारी जीव अन्य गत्यंतरे जाय छे. तो एहवा परतंत्र पदार्थो उपर स्नेह करवो अगर तेना स्नेहवशे बंधाई रहेवू ते मोक्षामिलाषी जीवोने युक्त नयी ॥४॥
पंथी जेम सराहमां, नदो नावनी रीति । तिम ए परियण तो मिल्यो, तिणथी शी प्रीति ॥रे जीव०॥५॥
अर्थः----पंथी लोको जेम धर्मशाला अथवा सराहमां भेगा मले छे वली नदीओ वीगेरेना नावमां पण अनेक तरेहना लोको भेगा मले छे तेम ए कारमो परिवार मल्यो छे तेथी प्रीति करी आत्म शुद्धताने चुकवू ए शुं हितकारी छे ? ना ए तो हितकारी नथी पण अहितकारी छे ॥५॥
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