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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org साधुनी पंच भावना. ९५५ अर्थः- वस्तु उत्सर्गे अने अपवादे जेम कही छे तेम सर्वे श्रुतचाल जाणे अने नययुक्तिथी वचन विरुद्धता निवारे अने बत्री दूषण टाळी अव्याप्ति, अतिव्याप्ति अने असंभबादि दोष वाली सूनो अर्थ यथार्थ ग्रहे, थापे निश्चय करे ||४|| द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक धरेरे, नयगम भंग अनेक । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नय सामान्य विशेष बेहु ग्रहेरे, लोकालोक विवेक ॥ श्रुत० ॥ ५ ॥ अर्थः- ज्यां मुख्यपणे द्रव्यार्थकने आगल करी बोल्या होय त्यां पर्याय अर्थनी गौणतानी सापेक्षता राखवी, ज्यां मुख्यपणे पर्याय अर्थ बतावी बोल्या होय त्यां द्रव्य अर्थनी गौणता सापेक्षता राखी तच्चार्थ विचारखो, नयना गमा अने अनेक भांगा ते पूर्वापर अने गौण मूख्य सापेक्षताए विचारी लेवा, एम सामान्यनय विशेषनय आदि अनेक प्रकारना नयवाद विचारी लेवा, वली लोकालोक के० लौकिक अलौकिक विवेक राखवो ते लौकिक लोकोत्तर विवेक जाणवो ||५|| For Private And Personal Use Only • नंदिसूत्रे उपगारी कह्योरे, बलि अशुच्चा ठाम | द्रव्यश्रुतने वांद्यो गणधरेरे, भगवई अंगे नाम ॥ श्रु० ॥ ६ ॥ अर्थः- नंदीसूत्रमां तथा भगवती अंगमां अशुच्चाकेवलीना अधिकारे सूत्रने उपकारी कह्यो छे, वली भगवतीसूत्रमां द्रव्य
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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