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सावनी पंच भावना.
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सद्गुरू शासन देव नमी, बृहत्कल्प अनुसार। शुद्ध भावना साधुनी, भाविश पंच प्रकार ॥३॥
अर्थः-वली शुऊ नये स्यादाद उपदेश देवावाला सद्गुम अने तीर्थकरोनी वाणी शासनदेवीने नमी बृहत्कल्प भाष्यने अनुसारे शिव मार्ग साधता साधुओने भाववानी शुफ पंच भावना भावीशुं ॥३॥ इंद्री योग कषायने, जीपे मुनि निशंक । इण जीते कुध्यान जय, जाए चित्त तरंग ॥४॥
अर्थः-मुनि पंच इंद्रियो, अण योग अने चार कषायने निर्भय निशंकपणे जीते तोज आर्त रौद्र कुध्यान माटा अध्यवसायने जीते अने तेथी चित्तना शुभाशुभ संकल्पो रूप तरंगो जाय एटले निर्विकल्पपणे शुद्धात्मगणमां परम समाधि पामे ॥ ४ ॥ प्रथम भावना श्रुततणो, बोजी तप तिय सत्त्व । तुरिय एकता भावना, पंचम भाव सुतत्त्व ॥ ५ ॥
अर्थः-तेमाहे श्रुत अभ्यासनी पहेली भावना (१) विषय भोग इच्छा रहित शुशात्म गुणमां तृप्त रहे, ते तपरूप बीजी भावना (२) द्रढताए धैर्य राखी परिसह अने विषयादिकथी चलायमान थर्बु नहि एम साहस राखवारूप त्रीजी सत्यभावना (३) शुझात्व तत्त्वमां एकत्त्व अडोलपणे परिणाम थिर करवा रूप चौथीए कत्वभावना (४) अने आत्म तत्त्व विचार रूपपांचमी सुतत्त्वभावना जाणवी (५)॥५॥
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