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श्री नवानगर आदिजीन स्तवन.
॥ श्री नवानगर आदिजीन स्तवन ॥
नवानगरमे भेटीए जिनवर जयकारी, परमानंद महारसी मूर्ति मनोहारी. नवा० ।।१।। घणा दीवसनी हंसडी हुती मनमांहे, ते सवि आज सफल थइ प्रणमे जगनाहे. नवा० ॥२॥ दरिसण दीठे देवनां दुःख जाए दूरे, चिदानंद रस उपजे समता रस पूरे, नवा० ॥३॥ जिन मुद्रा जिनवर समी शिव साधन भांखी,
श्री अरिहंत अवलंबने पूर्णता दाखी. नवा० ॥ ४ ॥ पण संवर जिन भक्तिनो फल सरखो तोल्यो, हितसुख निश्रयपणो आगममें बोल्यो. नवा० ॥५॥ तुंगीया नगरीना श्रावके जिन पूजा कीधी, भगवइमें शंख पुरवली पूजन विध लीधी. ॥ ६ ॥ रीखभदत्त अधिकारमें उवाइ उवंगे, विहरती जिन पुरफ पूजना अधिकार प्रसंगे. नवा०॥७॥ भगवइ अंगे साधुजी जिन प्रतिमा वंदे, आवश्यकमां पूजना अनुमोदे आणंदे. नवा० ॥८॥ भत्त पयन्ना सूत्रमें नव खेत्र वरवाण्यां, महा नीशिथे पूजनां फल अद्भूत जाण्यां. नवा० ॥९॥ भगवइ अनुजोगद्वारमें निर्जुक्ति प्रमाणी, ते में पूजा चैतन्यनी वीतरागे वखाणी. नवा० ॥१०॥ संपाविओ कामेककुं जिन आगळ नमतां, संपत्ताणं उच्चर्य प्रतिमा संरतवतां. नवा० ।। ११ ।।
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