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श्री वीरप्रमुर्नु दीवाली- स्तवन.
॥ श्री वीरप्रभुनुं दीवालीन स्तवन ॥
मारग देशक मोक्षनोरे, केवलज्ञान निधान ॥ भावदया सागर प्रभुरे, पर उपगारी प्रधानोरे ॥ १ ॥ वीर प्रभु सिद्ध थया, संव सकल आधारो रे ॥ हवे इण भरतमां, कोण करशे उपगारो रे ॥ वीर० ॥२॥ नाथ विहूणुं सैन्यज्यूं रे, वीर विहूणोरे संव ॥ साधे कोण आधारथीरे, परमानंद अभंगो रे ॥वी० ॥३॥ मात विहूणो बाल ज्युरे, अरहो परहो अथडाय ॥ वीर विहूणा जीवडारे, आकुल व्याकुल थाय रे ॥ वी० ॥४॥ संशय छेदक वीरनोरे, विरह ते केम खमाय ॥ जे दीठे सुख उपजेरे, ते विण केम रहेवाय रे ॥ वी० ॥५॥ निर्यामक भव समुद्रनोरे, भव अडवी सत्थवाह ॥ ते परमेश्वर विण मलेरे, केम वाधे उत्साह रे ॥ वी० ॥६॥ वीर थकां पण श्रुततणोरे, हतो परम आधार ॥ हवे इहां श्रुत आधार छेरे,अहो जिन मुद्रा साररे ॥ वी० ॥७॥ जण काले सवि जीवनेरे, आगमथी आणंद ॥ सेवो ध्यावो भवि जनारे, जिन पडिमा सुख कंदरे ॥ वी० ॥८॥ गणधर आचारज मुनिरे, सहुने एनि परे सिद्धि ॥ भव भव आगम संगीरे, देवचंद्र पद लीधरे ॥ वी० ॥९॥
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